सिलक्यारा सुरंग हादसे को आज एक साल पूरा हो गया है। बीते साल 12 नवंबर को देश-दुनिया में सिलक्यारा हादसा चर्चा का केंद्र बना रहा। 12 नवंबर को सिलक्यारा टनल में भूस्खलन होने से 41 मजदूर अंदर ही फंस गए थे। 17 दिनों तक वहीं फंसे रहने के बाद उन्हें रेस्क्यू किया गया था।
रैट माइनर्स ने 17 वें दिन मजदूरों को निकाला था बाहर
सिलक्यारा टनल हादसे को एक साल पूरा
सिलक्यारा टनल हादसे को आज एक साल पूरा हो गया है। 12 नवंबर 2023 को दीपावली के त्यौहार के दिन उत्तरकाशी से एक दुखद खबर सामने आई थी। उत्तरकाशी के ब्रह्मखाल यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा से डंडालगांव के बीच एक सुरंग का निर्माण किया जा रहा था। तभी अचानक सुबह 5:30 बजे इस निर्माणधीन टनल में भूधंसाव हो गया था। जिसमें 41 मजदूर अंदर फंस गए थे। इस घटना की जानकारी मिलते ही प्रशसन ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया था।
13 नवंबर को उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू का काम युद्ध स्तर पर जारी था। जहां एक तरफ पानी के पाइप के जरिए श्रमिकों तक कम्प्रेशर से खाना भेजा जा रहा था तो वहीं दूसरी तरफ मशीन से मलबा निकालने की कोशिश की जा रही थी। लेकिन जितना मलबा मशीन के जरिए निकाला जाता उतना ही ऊपर से गिरने लगता। तीसरे दिन 14 नवंबर को रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए 900 मिमी की व्यास पाइप और ऑगर ड्रिलिंग मशीन साइट पर पहुंच गई। ऑगर ड्रिल मशीन ने अपना काम भी शुरू कर दिया था लेकिन इस दौरान बोल्डर जैसी बाधाएं भी लगातार ड्रिल मशीन के रास्ते में आती गई। जिससे ऑगर ड्रिलिंग मशीन का कुछ हिस्सा भी टूट गया। इसके बाद दूसरी ऑगर ड्रिलिंग मशीन की मदद से रेस्क्यू ऑपरेशन को आगे बढ़ाया गया।
72 घंटे बीतने के बाद भी नहीं हो पाया था रेस्क्यू
अब तक श्रमिकों को टनल के अंदर 72 घंटे बीत चुके थे। श्रमिकों का सब्र धीरे-धीरे टूटने लगा था। वहीं श्रमिकों के बाहर मौजूद साथी भी आक्रोशित दिखाई दिए जिस वजह से श्रमिकों और पुलिस प्रशासन के बीच झड़प और धक्का मुक्की भी हुई। इसी बीच उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू की क्लोज मॉनिटरिंग के बाद पीएमओ ने बड़ा फैसला लिया। टनल में फंसे श्रमिकों को निकालने के लिए भारतीय सेना की मदद ली गई और इस फैसले के तहत मालवाहक विमान हरक्यूलिस के जरिए हेवी ड्रिल मशीन साइट पर पहुंचाई गई।
16 नवंबर को उत्तरकाशी रेस्क्यू आपरेशन को अब नई तेजी मिली थी। सुबह हरक्यूलिस विमान के जरिए मंगवाई गई हेवी ड्रिल मशीन को इंस्टाल कर दिया गया था। लेकिन इसी बीच ये पता लगा की ये 900 एम एम के पाइप के कंपन से खतरा पैदा हो रहा था। जिसे देखते हुए स्ट्रेटजी बदली गई और 800 एम एम के पाइप टनल के अंदर डाले जाने लगे। अमेरिकन ऑगर मशीन ने देर शाम तक 15 मीटर लंबी ड्रिल कर पाइप अंदर सैट कर दिए। ये वही पाइप थे जिनके जरिए मजदूरों को निकाला जाना था।
छह दिन बाद भी नहीं आए मजदूर बाहर
17 नवंबर को श्रमिकों को टनल के अंदर पूरे छह दिन बीत चुके थे। इस दिन पूरे दिन अमेरिकन ऑगर मशीन शांत खड़ी दिखाई दी। अब मशीन को लेकर तरह तरह की चर्चाएं होने लगी और ऐसे पूरा दिन बीत गया था। अगले दिन यानी 18 नवंबर को श्रमिकों को रेस्क्यू करने के लिए मंगाई गई ऑगर मशीन पिछले 20 घंटे से बंद पड़ी थी। एक्सपर्टस ने बताया की मशीन में कोई खराबी नहीं है बल्कि इस हेवी ऑगर मशीन के चलने से होने वाले वाइब्रेशन से टनल के अंदर मलबा गिर रहा है। जिससे टनल के अंदर फंसे श्रमिकों को खतरा हो सकता है इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है जिसके बाद एक और मशीन इंदौर से मंगवाई गई।
इसी बीच सारे मीडिया चैनलों में एक ही खबर प्रसारित होने लगी वो खबर दैवीय प्रकोप की थी। बताया जा रहा था की टनल के ठीक ऊपर बासुकी नागदेवता का मंदिर था। स्थानीय मान्यता है की कोई भी कार्य करने से पहले इनके मंदिर में श्रीफल चढ़ाया जाता है और कार्य की अनुमति ली जाती है। लेकिन टनल निर्माण कार्य की अनुमति लेना तो दूर कंपनी ने नाग देवता का बरसों पुराना ये मंदिर ही हटवा दिया। स्थानीय लोगों का मानना था की मंदिर हटाने की वजह से ही ये हादसा हुआ है। जिसके बाद कंपनी ने 18 तारीख को को टनल के बाहर से मलबा हटाकर एक छोटा मंदिर वहां स्थापित कर दिया।
सरकार ने छह बचाव विकल्पों का प्लान किया तैयार
19 नवंबर को उत्तरकाशी टनल हादसे को 8 दिन बीत चुके थे। अब केंद्र सरकार ने छह बचाव विकल्पों का प्लान तैयार किया जिसमें सुरंग के सिलक्यारा छोर, बड़कोट छोर, सुरंग के ऊपर और दाएं बाएं से ड्रिलिंग कर रास्ता तैयार किए जाने के साथ 2 रोबोट्स को भी टनल में भेजने की तैयारी की गई। श्रमिकों तक पोष्टिक भोजन और पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए रेस्क्यू टीम ने 5 इंच चौड़े पाइप डालना शुरू कर दिया था। इसी दिन केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितीन गडकरी उत्तरकाशी पहुंचे और हालातों का जायजा लिया था।
20 नवंबर को उत्तरकाशी टनल हादसे का 9 वां दिन था। रेस्क्यू ऑप्रेशन के 190 घंटे बीतने के बाद भी नतीजा सिफर था। इस टनल रेस्क्यू ऑप्रेशन में मदद करने के लिए इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष अर्नोल्ड डिक्स साइट पर पहुंचे उन्होंने बासुकी नाग देवता के मंदर में आशीर्वाद लिया और जहां से वर्टिकल ड्रिल होनी थी उस स्थान का भी परीक्षण किया। साथ ही इस टनल के अंदर रोबोट भेजने और उसके जरिए दूसरी तरफ पाइप डालने के साथ अन्य संभावनाएं तलाशी जाने लगी।
छह इंच का पाइप पहुंचा मजदूरों तक
21 नवंबर टनल हादसे का 10 वां दिन एक नयी उम्मीद लेकर आया। रेस्क्यू टीम श्रमिको तक छह इंच का पाइप पहुंचाने में कामयाब रही। इस पाइप के जरिए श्रमिकों को खिचड़ी मोबाइल चार्जर भेजे गए। इसके साथ ही एक एंडोस्कोपिक कैमरा भी टनल के अंदर भेजा गया। जिसके जरिए इन 10 दिनों में पहली बार देश ने टनल के अंदर फंसे 41 मजदूरों के चेहरे देखे।
22 नवंबर यानी टनल हादसे का 11 वां दिन टनल में वर्टिकल ड्रिलिंग का काम तेजी से चलने लगा था तभी अचानक मशीन के रास्ते में एक आयरन रॉड आ गई और इसे काटने में करीबन 6 घंटे लगे। 23 नवंबर रेस्क्यू ऑप्रेशन के बारहवें दिन भी मजदूर बाहर नहीं आ पाए। इसी तरह तीन दिन और बीत गए लेकिन मजदूरों को बाहर नहीं निकाला जा सका था।
रैट माइनर्स ने 17 वें दिन मजदूरों को निकाला था बाहर
16 दिनों के लंबे इंतजार के बाद 28 नवंबर को हादसे के 17वें दिन कड़ी मशक्कत के बाद 41 मजदूरों को रेस्क्यू किया गया। बता दें कि सिलक्यारा टनल हादसे में फंसे मजदूरों के लिए रैट माइनर्स देवदूत बनकर आए थे। रैट माइनर्स की छह सदस्यीय टीम ने मजदूरों को रेस्क्यू करने में अहम भूमिका निभाई थी। टनल से मजदूरों के बाहर निकालने के बाद सीएम धामी ने घोषणा की थी सुरंग के मुहाने पर बाबा बौखनाग का मंदिर बनाया जाएगा। इस घोषणा को पूरा करते हुए बाबा बौखनाग का मंदिर बना दिया गया है।