उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में हमेशा कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलता है। इन दोनों पार्टियों के अलावा उत्तराखंड में तीसरे नंबर पर बसपा का नाम आता तो जरूर है लेकिन बसपा उत्तराखंड के लोकसभा चुनाव में आज तक एक भी सीट नहीं जीत पाई है। ऐसा भी कहा जा सकता है की प्रदेश में चुनाव दर चुनाव बसपा का दायरा सिमटता हुआ दिखाई दे रहा है। कुछ ऐसी ही कहानी सपा की भी है। लोकसभा चुनाव में एक सीट जीतने के बाद सपा किसी विधानसभा या लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई।
साल 2000 में सात सीटों पर दर्ज की थी जीत
उत्तराखंड में हर बार चुनावी मौसम में दो पार्टियों के बीच ही मुकाबला होता है। बीजेपी और कांग्रेस इन दोनों के अलावा उत्तराखंड में अब तक कोई मजबूत पार्टी नहीं आई है। साल 2000 में जब राज्य का गठन हुआ तो उस समय पहले विधानसभा के चुनाव करवाए गए। बसपा ने उस चुनाव में सात सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके साथ ही उसे कुल 10.79 प्रतिशत वोट भी मिले। लेकिन इसके बाद साल 2004 में राज्य के पहले लोकसभा चुनाव हुए इन चुनावों में बसपा को 6.77 प्रतिशत ही वोट मिल पाए और बसपा एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं करा पाई।
उत्तराखंड में आज तक एक भी सीट नहीं जीत पाई बसपा
एक बार फिर 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने अपना प्रदर्शन सुधारा तब बसपा को प्रदेश में आठ सीटों पर जीत हासिल हुई।
इसके दो साल बाद 2009 में उत्तराखंड के दूसरे लोकसभा चुनाव हुए उस वक्त भी बसपा की झोली में एक भी सीट नहीं आई। हर सीट से उनके प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद साल दर साल बसपा का प्रदर्शन गिरता चला गया और साल 2012 के विधानसभा चुनावों में बसपा सिर्फ तीन ही सीटों पर जीत दर्ज करा पाई।
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा जनता से नहीं जुड़ पाई और एक बार फिर बसपा को लोकसभा चुनावों में किसी सीट पर जीत नहीं मिली। लोकसभा चुनावों में तो बसपा का प्रदर्शन शुरू से ही ठीक नहीं था लेकिन अब विधानसभा में भी बसपा को नकारा जाने लगा। साल 2017 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो बसपा को अब यहां भी एक सीट तक हासिल नहीं हुई। राज्य गठन के बाद ये पहली बार था जब बसपा इतनी बुरी तरह हारी थी।
गठबंधन करने के बाद भी नहीं कर पाई कमाल
साल 2019 में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने की सोची। गठबंधन के बाद भी दोनों पार्टोयों को कुल 4.5 प्रतिशत वोट ही नसीब हुए। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा एक बार फिर खड़ी उठी और चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार भी बसपा 4.9 प्रतिशत के मत के साथ केवल दो सीटें ही जीत पाई।
समाजवादी पार्टी सिर्फ एक बार जीत पाई लोकसभा सीट
समाजवादी पार्टी उत्तराखंड में शुरू से ही उपेक्षित रही लेकिन साल 2004 का चुनाव इसमें अपवाद है। प्रदेश के पहले और साल 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा को जो वोट मिले और जीत के लिए जो वोट चाहिए थे उनका अंतर मामूली ही था। सपा पहली बार जनता को विश्वास दिलाने में कामयाब रही। इसके बाद साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा ने हरिद्वार सीट से जीत हासिल की उस समय इस सीट से सपा प्रत्याशी राजेंद्र बाड़ी थे। इस चुनाव में सपा को 7.93 प्रतिशत मत मिले थे।
राज्य गठन के बाद ये सपा का पहला सबसे अच्छा प्रदर्शन था। लेकिन इसके बाद सपा की स्थिति उत्तराखंड में खराब होती चली गई। सपा ना तो विधानसभा और ना ही लोकसभा चुनाव में इस प्रदर्शन को दोहरा पाई। साल 2007 के विधानसभा चुनाव में सपा को कुल 5.0 प्रतिशत वोट मिले। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में भी सपा कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन में और ज्यादा गिरावट आ गई और पार्टी को मात्र 1.4 प्रतिशत वोट ही हासिल हो पाए।
2014 में सपा 0.4 प्रतिशत वोटों पर सिमटी
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा मात्र 0.4 प्रतिशत वोटों पर ही सिमट कर रह गई। इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी साल 2017 से 2022 तक सपा की साइकिल उत्तराखंड में कभी नहीं चल पाई। इसकी जड़ें रामपुर तिराहा कांड से भी जुड़ी हुई हैं। आपको बता दें की जब पृथक राज्य की मांग को लेकर आंदोलनकारी उत्तराखंड से दिल्ली जा रहे थे तब यूपी में सपा नेता मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में सरकार ने आंदोलनकारीयों पर गोलियां चलाई गई महिलाओं के साथ बालात्कार तक कर दिए गए थे। इस घटना को हर उत्तराखंडी काले दिन के रूप में याद करता है। इसी घटना के कारण शायद सपा की साइकिल उत्तराखंड में नहीं चल पाई।