प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने उत्तराखंड में आयोजित ग्लोबल इनवेस्टर समिट का उद्घाटन किया जो पहाड़ों में नए अवसरों के एक युग की शुरूआत है। इसी दौरान उन्होंने कहा की पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी अब पहाड़ के काम आएगा।
Global Investors Summit से आई निवेश की बहार
पहाड़ों पर अक्सर एक कहावत कही जाती है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आते। लेकिन पीएम मोदी के ये शब्द साफ इशारा है की इस समिट के जरिए कई हद तक पलायन को कम करने में मदद मिल सकेगी। पीएम मोदी के इन शब्दों से ऐसा लग रहा था कि जैसे पीएम पहाड़ की सालों पुरानी पीड़ा पलायन से वाकिफ हों और इसे दूर करने कि अपील कर रहे हों।
उत्तराखंड में पलायन बहुत बड़ी समस्या है यहां खंडहर हो चुके गांव और वहां अकेले रहते इक्के-दुक्के कमोजर शरीर, झुकी कमर वाले बुजुर्ग आपको सामान्य रूप से दिख जाएंगे। अब सवाल ये उठता है कि पलायन हो क्यों रहा है। इसके कारणों को तो हर कोई जानता है। लेकिन इसके समाधानों के लिए ज्यादा कोई काम नहीं हो पा रहा है।
हजारों गांव घोस्ट विलेज घोषित
पहाड़ों में रोजगार की कमी, मूलभूत सुविधाओं का अभाव युवाओं को पहाड़ों का आंचल छोड़ने पर मजबूर कर रहा है। अब तक उत्तराखंड में पलायन के कारण 1,792 से ज्यादा गांव घोस्ट विलेज में तब्दील हो गए हैं। क्या कुमाऊं क्या गढ़वाल रिपोर्टस के मुताबिक साल 2018 से 2022 के बीच पूरे उत्तराखंड से 76.94% लोगों ने गांव छोड़कर राज्य के अंदर पलायन किया है। रिपोर्टस की मानें तो चमोली रूद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी और पौड़ी से सबसे ज्यादा पलायन हुआ है।
सरकारें सालों से दावा करती आ रही हैं की वो पलायन को रोकने का प्रयास कर रही हैं पर सच तो यही है की इसके बावजूद भी अब तक पलायन का सिलसिला थम नहीं पाया है। पलायन के कारणों में एक कारण पहाड़ के उत्पादों को वो जगह नहीं मिलना भी है जो उन्हें मिलनी चाहिए। इसका अंदाजा हम इस बात से ही लगा सकते हैं कि जीआई टैग मिल चुके माल्टे का न्यूनतम समर्थित मूल्य मात्र 10 रूपए किलो है। सही दाम ना मिलने के कारण पहाड़ के किसान खेती के साथ साथ अपनी मिट्टी भी छोड़ रहे हैं। अभी कुछ समय पहले तक जो गांव के आंगन बच्चों की किलकारियों और ग्रामीणों से भरे रहते थे आज उन आंगनों में सन्नाटा पसरा हुआ है।
पहाड़ का तो अर्थ ही मुश्किल होता है तो हम ये उम्मीद कैसे कर सकते हैं की यहां का जीवन आसान होगा लेकिन ये मुश्किलें तब और बढ़ जाती हैं जब पहाड़ों में जीने के लिए मूलभूत सुविधाओं का ही अभाव हो, कई कारणों में से मूलभूत सुविधा भी एक कारण हैं जिसके चलते भी दिन पर दिन लोग अपना भरा पूरा घर छोड़ने को मजबूर हैं ।
हाउस ऑफ हिमालयाज से मिलेगी पहाड़ी उत्पादों को पहचान
आठ दिसंबर को हुई ग्लोबल समिट में पीएम ने उत्तराखंड के प्रोडक्टस को प्रमोट करने के लिए यहां के प्रोडक्टस को नया ब्रांड नेम दिया हाउस ऑफ हिमालयाज इसी के साथ उन्होंने स्थानीय प्रोडक्टस के लिए ग्लोबल मार्केट बनाने की भी बात कही। पीएम के इस कदम से उम्मीद जगी है की अब उत्तराखंड के प्रोडक्ट को ग्लोबल मार्केट में नई पहचान के साथ-साथ एक अलग जगह भी मिल सकती है।
उत्तराखंड में रोजगार का एक नया सेक्टर हो सकता है तैयार
उत्तराखंड में अधिकतर रेवेन्यू टूरिस्म सेक्टर से आता है। ग्लोबल समिट के दौरान पीएम मोदी ने उत्तराखंड में टूरिस्म सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए वेड इन इंडिया की भी बात कही और सीधे कहा की आप अपने परिवार की एक डेस्टिनेशन वेडिंग अगले पांच साल में देवभूमि के आंचल में आकर देवी देवताओं का आशीर्वाद लेकर करें अगर ऐसा होता है तो उत्तराखंड में रोजगार का एक नया सेक्टर खड़ा हो जाएगा।
इससे ये साफ है की अगर उत्तराखंड के लोगों को यहीं रोजगार मिल जाता है तो हर दिन खाली होते गांव और खंडहर में तब्दील होते मकान कई हद तक रुक सकते हैं और पहाड़ के जो डाने-काने वीरान हो चुके हैं वो एक बार फिर से आबाद हो सकते हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कई प्रवासी उत्तराखंडियों का यही कहना है कि अगर रोजगार और सुविधाएं उन्हें पहाड़ों पर ही मिल जाएं तो वो रिवर्स पलायन के लिए तैयार हैं।
उत्तराखंड में हो रहे ग्लोबल समिट से ये साफ है की अगर देवभूमि के अलग-अलग सैक्टर्स में इनवेस्टर्स निवेश करते हैं तो कहीं ना कहीं यहां रोजगार बढ़ने की संभावनाएं हैं। अगर पहाड़ के युवाओं को देवभूमि में ही रोजगार मिल जाएगा तो उन्हें अपना घर गांव छोड़कर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इस कदम से जहां एक तरफ पलायन कम होगा वहीं दूसरी तरफ प्रवासी भी घर वापसी के लिए प्रेरित होंगे। उत्तराखंड में निवेश से उत्तराखंड के विकास को एक नई दिशा मिल सकती है जिससे यहां को लोग समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।