जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में आज से बूढ़ी दिवाली का आगाज हो गया है। ब्रह्म मुहूर्त में ग्रामीणों ने मशालें जलाकर बूढ़ी दिवाली की शुरूआत की। लोग ढोल-दमाऊं की थाप पर झूमकर बूढ़ी दिवाली का जश्न मना रहा हैं। बता दें कि जौनसार बावर में पांच दिनों तक बूढ़ी दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है।
जौनसार बावर में बूढ़ी दिवाली का आगाज
एक दिसंबर यानी आज सुबह से जौनसार बावर में ब्रह्म मुहूर्त में मशालें जलाकर बूढ़ी दिवाली का आगाज हो गया है। बूढ़ी दिवाली के त्यौहार को मनाने के लिए नौकरी पेशा के लिए बाहर गए लोग शहर गए लोग वापस लौट आए हैं। गांव-गांव में बूड़ी दिवाली की रौनक देखते ही बन रही है। घरों में चहल-पहल है।
ढोल-दमाऊं की थाप पर झूमकर लोग मना रहे जश्न
ढोल-दमाऊं की थाप पर झूमकर लोग बूढ़ी दिवाली का जश्न मना रहे हैं। ढोल दमाऊं की थाप पर दिवाली पर गाए जाने वाले गीत गाकर खुशी मना रहे हैं। आपको बता दें कि उत्तराखंड के जौनसार में दिवाली के एक महीने बाद फिर से दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसे आज भी लोग निभा रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की सूचना देर से मिली। जिस कारण यहां दिवाली देर से मनाई जाती है।
एक महीने बाद क्यों मनाई जाती है दिवाली
जहां एक ओर ये कहा जाता है कि भगवान राम के वनवास से अयोध्या लौटने की सूचना जौनसार में देर से मिली इसलिए यहां दिवाली एक महीने बाद मनाई जाती है। तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है कि जौनसार बावर एक कृषि प्रधान क्षेत्र है और यहां सालभर काफी काम होता है।
जिस कारण यहां लोग दिवाली के समय अपने काम में काफी व्यस्त रहते हैं। इस दौरान फसलें होती थी इसलिए एक महीने बाद अपने काम निपटाने के बाद लोग बूढ़ी दीवाली का जश्न परंपरागत तरीके से मनाते हैं। आपको बता दें कि दिवाली के ठीक एक महीने बाद यहां लोग पांच दिनों तक परंपरागत तरीके से दिवाली मनाते हैं। ये दिवाली पूरी तरह इको फ्रेंडली होती है।