‘दुश्मन न करे, दोस्त ने वो काम किया है, उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है!’

Dushman Na Kare Dost Ne Wo Kaam Kiya Hai pm Narendra Modi, Russian President Vladimir Putin and Ukrainian President Volodymyr Zelensky blog Vikas Mishra | ‘दुश्मन न करे, दोस्त ने वो काम किया है, उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है!’
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Highlightsएलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव में करीब-करीब 2200 करोड़ रुपए खर्च किए.ट्रम्प की जीत के बाद सभी को लग रहा था कि अब एलन मस्क के बल्ले-बल्ले हैं. विवेक रामास्वामी को भी जोड़ दिया ताकि एलन मस्क मनमर्जी न चला पाएं.

मशहूर उद्योगपति एलन मस्क, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच एक खास समानता है. इन सभी पर 1965 में बनी फिल्म ‘आखिर क्यों’ का यह गाना बड़ा फिट बैठता है… ‘दुश्मन न करे, दोस्त ने वो काम किया है/उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है!’ आप समझ गए होंगे कि इन सभी के लिए दुश्मन के किरदार में कौन है?

वही, अमेरिका वाले डोनाल्ड ट्रम्प! अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प जब दूसरी बार चुनाव मैदान में कूदे तो दुनिया के मशहूर उद्योगपति एलन मस्क ने न जाने क्यों उनके लिए खजाना खोल दिया. खजाना ऐसा खोला कि वे रिपब्लिकन के लिए सबसे बड़े दान दाता बन गए. अधिकृत दस्तावेज कहते हैं कि एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव में करीब-करीब 2200 करोड़ रुपए खर्च किए.

ट्रम्प की जीत के बाद सभी को लग रहा था कि अब एलन मस्क के बल्ले-बल्ले हैं. ट्रम्प ने मस्क को तात्कालिक इनाम देने में देरी नहीं की. उन्हें नवनिर्मित डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफीशिएंसी (डोज) की जिम्मेदारी सौंप दी गई लेकिन साथ में विवेक रामास्वामी को भी जोड़ दिया ताकि एलन मस्क मनमर्जी न चला पाएं.

दरअसल ट्रम्प को ऐसे लोग पसंद ही नहीं हैं जो अपने दिमाग से काम करें. वे पूरी दुनिया को अपने दिमाग से और व्यावसायिक तरीके से चलाना चाहते हैं. दोनों के बीच विवाद होना ही था! कुछ ही दिनों में विवाद उभरने लगे. ट्रम्प ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ नाम का बिल लेकर आ गए जो इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैक्स क्रेडिट को प्रभावित करने  वाला था और उससे एलन मस्क की कंपनी टेस्ला को नुकसान होने वाला था.

मस्क ने इसे घृणित और शर्मनाक तो कहा ही, यह भी दावा कर दिया कि वे न होते तो ट्रम्प चुनाव न जीत पाते. ट्रम्प ने भी मस्क के कारोबार को क्षति पहुंचाने की धमकी दे दी और मस्क को पागल तक कह दिया. इसके बाद तो मस्क ने जो कहा, उससे दुनिया चौंक गई. मस्क का कहना था कि चर्चित यौन अपराधी जेफरी एपस्टीन से जुड़ी फाइलों में ट्रम्प का नाम है.

इसीलिए उन फाइलों को जारी नहीं किया गया है. जेफरी की मौत 10 अगस्त 2019 को न्यूयॉर्क की जेल में हो गई थी. वहां वह यौन तस्करी के आरोपों में बंद था. उस पर आरोप था कि वह अमीर लोगों के लिए नाबालिग लड़कियां उपलब्ध कराता था. अब अमेरिका में यह मांग उठ रही है कि जेफरी की फाइल सार्वजनिक की जाए ताकि ट्रम्प का खुलासा हो सके.

अब आप ट्रम्प के दूसरे दोस्त, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ संबंधों को देखिए. आपको सितंबर 2019 में ह्यूस्टन में जमा हुए 50 हजार भारतीयों की भीड़ की याद होगी, जहां नरेंद्र मोदी के साथ ट्रम्प भी खड़े थे. ट्रम्प ने मोदी के साथ दोस्ती के कसीदे काढ़े थे और माना जा रहा था कि 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में भारतीयों को लुभाने के लिए ट्रम्प ने उस मंच का उपयोग किया.

उस कार्यक्रम को दुनिया हाउडी मोदी के नाम से जानती है. भारत में हुए कार्यक्रम नमस्ते ट्रम्प को भी लोग भूले नहीं होंगे. ट्रम्प जब दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रहे थे तो पूरा भारत यह मान कर चल रहा था कि ट्रम्प, नरेंद्र मोदी के दोस्त हैं तो भारत के भी दोस्त हैं इसलिए उनकी जीत के लिए भारत में हवन पूजन हुआ और विजयी श्लोक पढ़े गए.

वे जीते तो जश्न मनाया गया. मगर आज भारत के साथ जो दुश्मनी ट्रम्प दिखा रहे हैं, वह पाकिस्तान की दुश्मनी से भी खतरनाक रूप ले चुकी है. ऑपरेशन सिंदूर के बारे में ट्रम्प के झूठ को नरेंद्र मोदी ने स्वीकार नहीं किया तो ट्रम्प अत्यंत खफा हो गए और जानलेवा टैरिफ लगा दिया. पाकिस्तान को गोद में बिठा लिया. उन्हें शहबाज शरीफ और मुनीर की चंपी मालिश अच्छी लगती है.

दिखावे के लिए वे अब भी नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बता रहे हैं, भारत को दोस्त बता रहे हैं. व्हाइट हाउस में दिवाली मनाने के बाद भी उन्होंने दोस्ती की कसमें खाईं लेकिन हकीकत बिल्कुल जुदा है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की ये बात बिल्कुल सही लगती है कि ट्रम्प और नरेंद्र मोदी के बीच की गहरी निजी दोस्ती अब खत्म हो चुकी है.

ट्रम्प के व्यवहार को गहराई से जानने वाले बोल्टन ने तो यहां तक चेतावनी दी है कि ट्रम्प के साथ अच्छे रिश्ते विश्व नेताओं को ट्रम्प की नीतियों के बुरे असर से नहीं बचा सकते. रूसी राष्ट्रपति पुतिन को भी ट्रम्प दोस्त कहते नहीं थकते थे. यहां तक कि उस दोस्ती से फायदे की उम्मीद में उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को व्हाइट हाउस में काफी बेइज्जत करने की कोशिश की.

अब पुतिन के खिलाफ ही ट्रम्प हर तरह के पैंतरे अपना रहे हैं. लेकिन वास्तव में पुतिन ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो ट्रम्प को छकाने में माहिर साबित हुए हैं. वे ट्रम्प को देख कर हर बार कुटिल मुस्कान बिखेरते नजर आए लेकिन ट्रम्प के झांसे में नहीं आए. अब ट्रम्प फिर से जेलेंस्की के साथ नजर आ रहे हैं लेकिन जेलेंस्की भी समझ रहे होंगे कि ये आदमी फिर दगा देगा.

ट्रम्प जैसे व्यक्ति के लिए भारत में एक कहावत है- बिन पेंदी का लोटा! वैचारिक रूप से वे अस्थिर हैं. उन्हें किसी से भी दोस्ती करने से कोई परहेज नहीं है लेकिन निभाते केवल उन्हीं से हैं जिनसे उन्हें कोई फायदा हो. वे राजनीति, कूटनीति और विदेश नीति को केवल इस नजरिये से देखते हैं कि कहां तत्काल फायदा हो रहा है.

वे बस व्यापारिक डील्स चाहते हैं. इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं. अब अमेरिका के लोग इस बात को समझ रहे हैं और यह भी समझ रहे हैं कि इससे अमेरिका का नुकसान हो रहा है. यही कारण है कि 70 लाख लोग ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर आ गए. इनमें से बहुत सारे लोग वे होंगे जिन्होंने ट्रम्प को वोट भी दिया होगा यानी वैचारिक दोस्ती निभाई होगी लेकिन ट्रम्प ने उन्हें भी दगा दिया है.

वे किसी लोकतांत्रिक देश के मुखिया जैसा नहीं, निरंकुश बादशाह जैसा व्यवहार कर रहे हैं. इसीलिए अमेरिकी लोगों ने नो किंग का बोर्ड अपने हाथों में लहराया है क्योंकि राजा किसी का दोस्त नहीं होता.
बहरहाल, जिन्होंने ट्रम्प की दोस्ती और दुश्मनी का स्वाद चखा है, उनके लिए मुझे राहत इंदौरी का ये खूबसूरत शेर याद आ रहा है…

दोस्ती जब किसी से की जाए

दुश्मनों की भी राय ली जाए !

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