सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है। AMU के अल्पसंख्यक दर्जा को लेकर कोर्ट में कई बार बहस की जा चुकी है। शुक्रवार को जब कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो 57 साल पहले 1967 में दिए अपने ही फैसले को रद्द कर दिया। 57 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पंसख्यक संस्थान का दर्जा पाने के लिए हकदार है।
हालांकि भविष्य में इस यूनिवर्सिटी के लिए अल्पसंख्यक का दर्जा रहेगा या नहीं इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 3 जजों की नई बेंच गठित करने को कहा जो यह तय करेगी कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे मंशा क्या थी। अगर पूरी जांच अल्पसंख्यक समुदाय की ओर इशारा कर रही है, तो AMU अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक दर्जा का दावा कर पाएगी। आइये जानते हैं कि अल्पसंख्यक का दर्जा मिलता है तो उसके क्या फायदे होते हैं और दर्जा छिन जा है तो क्या नुकसान होते हैं।
अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से फायदे
- टीचर्स और एडमिशन की भर्ती प्रक्रिया में कोटा लागू होता है।
- संस्थान 50 फीसदी कोटा लागू कर सकता है।
- एक अल्पसंख्यक संस्थान प्रवेश पात्रता तय कर सकता है और फीस कितनी होगी यह भी खुद तय करक सकता है।
- संस्थान को कई तरह की आजादी मिल जाती है।
- अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान की जाती है, जिसमें उनके शासी निकाय और अन्य स्टाफ सदस्यों को चुनने की स्वतंत्रता भी रहती है।
अल्पसंख्यक का दर्जा न मिलने से नुकसान
- दर्जा न मिलने की स्थिति में 50 फीसदी कोटा सिर्फ उन छात्रों को मिलता है जो संस्थान में पहले से पढ़ रहे हैं।
- संस्थान को पढ़ाई से लेकर टीचर की नियुक्ति तक करने में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन यानी UGC की गाइडलाइन को मानना होगा।
- सरकार का कहना है, अगर कोई प्राइवेट इंस्टीट्यूट अपने पैसे से चल रहा है तो वहां अपना नियम लागू कर सकता है, लेकिन जिन संस्थानों को सरकारी मदद मिलती है वो संस्थान ऐसा दर्जा अपनी मर्जी से नहीं लागू कर सकते।