
चमोली के माणा पास पर हुए हिमस्खलन (Chamoli Avalanche update) में चार श्रमिकों की मौत हो गई है। अब तक कुल पचास श्रमिकों को निकाला जा चुका है। इनमें से चार की मौत हो चुकी है जबकि पांच लापता हैं। इनके कंटेनरों में फंसे होने की आशंका है। बर्फ की मोटी पर्त होने के चलते इन कंटेनरों का पता नहीं चल पा रहा है।
कंटेनरों का नहीं लग पा रहा है पता
हिमस्खलन वाले स्थान पर श्रमिक कंटेनरों में थे। बताया जा रहा है कि एवलांच के बाद इन कंटेनरों के ऊपर भारी बर्फ जमा हो गई और इसकी वजह से कंटेनरों को तलाश करना मुश्किल हो रहा है। पूरे इलाके में भारी बर्फ जमा है और कंटेनर दिख नहीं रहे हैं। ऐसे में स्निफर डॉग्स की मदद ली जा रही है। इसके साथ ही दिल्ली से विशेष तरह का सेना का राडार मंगाया गया है। ये राडार ग्राउंड पेनिट्रेशन राडार है और इस तरह के कामों में उपयोग होता है।
चार श्रमिकों की मौत, पांच की तलाश जारी
इस हादसे का शिकार हुए कुल पचपन श्रमिकों में से पचास को बाहर निकाल लिया गया है। हालांकि इनमें से चार की मौत हो चुकी है। कुछ श्रमिक गंभीर रूप से घायल हैं जिनका इलाज चल रहा है। इसके साथ ही पांच श्रमिकों का खबर लिखे जाने तक पता नहीं चल पाया है। आशंका है कि ये सभी बर्फ के नीचे दबे कंटेनरों में हो सकते हैं। फिलहाल रेस्क्यू टीमें इन्हे तलाश रही हैं।
क्या होता है ऐवलांच, उत्तराखंड में मचा चुका है तबाही
ऐवलांच या हिमस्खलन तब होता है जब किसी पहाड़ या ढलान पर बर्फ तेजी से नीचे गिरती है। आमतौर पर ऐसा ताजी गिरी बर्फ के साथ होता है क्योंकि ये बर्फ भुरभुरी होती है। इस बर्फ के साथ साथ पत्थर, मिट्टी आदि भी नीचे आता हैं जिससे ऐवलांच और भी अधिक खतरनाक हो जाता है। कई बार ऐवलांच इंसानी गतिविधियों मसलन तेज शोर, ड्रिलिंग या फिर प्राकृतिक रूप से भूकंप इत्यादि से भी आ जाता है। उत्तराखंड में ऐवलांच की ये पहली घटना नहीं है इससे पहले भी यहां कई ऐवलांच आए हैं –
- 2008 में कालिंदी पास में भी एवलॉंच हुआ जिसमें नौसेना के 5 पर्वतारोहियों सहित 6 की मौत हुई थी
- 2012 में वासुकी ताल के पास हिमस्खलन से 5 पर्यटकों की मौत हो गई
- 2019 में नंदा देवी की चोटी पर एवलांच हाँ जिसमें विदेशी पर्वतारोहियों की मौत की खबर आई
- 2021 में त्रिशूल चोटी पर ऐवलांच हुआ जिसमें 9 पर्यटकों की मौत हो गई
- 30 जून 2024 को केदारनाथ के गांधी सरोवर में ऐवलांच हुआ