काश, पुरुषों को भी पीरियड्स होते’, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी?

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कुछ ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान एक ऐसी टिप्पणी की जो इस देश की आधी आबादी के दर्द और उनकी व्यथा की ओर इशारा करता है। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी शायद इस ओर भी इशारा करती है कि भारत में महिलाओं को लेकर समाज में दोहरा रवैया अब भी बरकरार है और महिलाएं अगर कामकाजी हैं तो उनके लिए मुश्किलें और भी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी मध्यप्रदेश में नियुक्त महिला जजों के मामले की सुनवाई के दौरान की है।

‘काश, पुरुषों को भी पीरियड्स होते’-

सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि, “काश पुरुषों को भी पीरियड्स होते, तब उन्हें समझ आता कि महिलाओं को किन मानसिक और शारीरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।”
सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा छह महिला जजों की बर्खास्तगी के मामले की सुनवाई के दौरान आई है।
अब सवाल ये है कि आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि संवेदनशीलता और न्याय का संतुलन बनाए रखना जरूरी है?आइए, समझते हैं इस पूरे घटनाक्रम को।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी?

दरअसल ये पूरा मामला MP High Court से जुड़ा है। साल 2023 में मध्य प्रदेश सरकार ने Unsatisfactory Performance का हवाला देते हुए 6 महिला जजों को बर्खास्त कर दिया। उस वक्त ये फैसला राज्य कानून विभाग, एक प्रशासनिक समिति और हाई कोर्ट के जजों की एक बैठक के बाद लिया गया। इस बैठक में ट्राइल पीरियड(Probation Period) के दौरान इन महिला जजों के प्रदर्शन को unsatisfactory पाया गया था।

इस मामले का सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान

नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाई कोर्ट को इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए कहा। कोई सुनवाई नहीं हुई तो जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को एक महीने के अंदर इस मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए कहा।

दो महिला जजों को किया बर्खास्त

इसके बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अगस्त 2024 को अपने पहले के प्रस्तावों पर फिर विचार किया और 4 महिला जजों को कुछ शर्तों के साथ बहाल कर दिया। जबकि बाकी दो महिला जजों – अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी की बर्खास्तगी जारी रही
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन महिला जजों के केसिस पर विचार किया। हाई कोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अदिति शर्मा की परफॉर्मेंस 2019-20 के दौरान बहुत अच्छी( very good) और अच्छी (Good Rating) से गिरकर बाद के सालों में एवरेज(Average) और बेकार(Poor) की कनडिशन पर आ गई। बताया गया है कि 2022 में उनके पास लगभग 1,500 पेनडिंग केसिस(Pending Cases) थे, जिन्हें निपटाने की रेट 200 से कम था।

क्या थी इतनी लंबी छुट्टियों की वजह


हालांकि रिपोर्ट्स के मुताबिक अदिति शर्मा की इतनी लंबी छुट्टियों की वजह उनके साथ हुए वो घटनाक्रम थे। जिन्होंने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से झकझोर दिया था। दरअसल अदिति को गर्भधारण हुआ और उन्होंने छुट्टी ली। लेकिन उनका गर्भपात हो गया। इसी दौरान उनके भाई कैंसर की चपेट में आ गए। ऐसी घटनाओं ने अदिति को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर किया लिहाजा वो काम पर नहीं लौट पाईं।

अदिति ने ये जानकारी एमपी हाईकोर्ट को भी दी थी। वहीं एक महिला जज के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि चार साल की सेवा के बाद उन्हें गैरकानूनी तरीके से सेवा से हटा दिया गया। इस जज के वकील ने आशंका जताई कि उनके क्लाइंट के मेटनिर्टि लीव पर रहने को भी परफार्मेंस में जोड़ा गया है। अपने बचाव ये महिला जज कहती हैं कि अगर मेटर्नटि लीव और बच्चे की देखभाल के लिए ली गई लीव की ड्यूरेशन को भी ध्यान में रखा जाएगा तो ये उनके साथ घोर अन्याय होगा।

बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब


उधर सुप्रीम कोर्ट ने महिला जजों के केसेज पर विचार किया और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सिविल जजिस (Civil Judges) की बर्खास्तगी के मानदंड़ों पर हाई कोर्ट से जवाब मांगा है। साथ ही जस्टिस नागरत्ना ने सख्त लहजे में कहा – मैं उम्मीद करती हूं कि पुरुष जजों पर भी यही नियम लागू किए जाते होंगे। एक महिला जज गर्भवती हो गई थी और फिर उनका गर्भपात हो गया इन हलातों में एक महिला कितनी शारीरिक और मानसिक परेशानियां झेलती है,इसका अंदाजा है? काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता तब उन्हें इसका पता चलता।

मामले की अगली सुनवाई कब?

वैसे आपको बता दें की भारत में Maternity and Child Care Leave एक महिला और बच्चे का Fundamental Right है इसके लिए एक स्थापित कानून या Settled Law भी है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।
ये घटना अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। सवाल ये कि क्या हम अपने work places में महिलाओं की परिस्थितियों को पूरी संवेदनशीलता के साथ समझ पा रहे हैं। क्या 21वीं सदी के भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति रवैए को और बेहतर बनाने की जरूरत है?

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