मूल निवास, भू-कानून संघर्ष समिति ने किया भूख हड़ताल का ऐलान, बोले रद्द हो काले कानून

मूल निवास, भू-कानून संघर्ष समिति ने किया भूख हड़ताल का ऐलान, बोले रद्द हो काले कानून

मूल निवास, भू-कानून संघर्ष समिति ने काले कानूनों के रद्द न होने पर भूख हड़ताल का ऐलान किया है. इसके साथ ही समिति ने कहा कि वह किसी भी राजनीतिक पार्टी के झंडे के नीचे खड़ी नहीं होगी.

समिति ने किया भूख हड़ताल का ऐलान

समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने प्रेस कांफ्रेंस कर दो टूक शब्दों में कहा कि जनता द्वारा बनाई गई संघर्ष समिति राजनीतिक दलों के झंडे के नीचे मूल निवास और भू-कानून की लड़ाई में खड़ी नहीं होगी. उन्होंने कहा कि राज्य बनने के 24 वर्षों में राजनीतिक दलों ने जनता को धोखा दिया है. अब जनता का इन पर भरोसा नहीं रहा. उन्होंने ऐलान करते हुए कहा कि सरकार ने भूमि से जुड़े काले कानूनों को रद्द नहीं किया तो 26 नवंबर से शहीद स्मारक में भूख हड़ताल शुरू कर दी जाएगी.

10 नवंबर को हरिद्वार में निकली जाएगी स्वाभिमान रैली

मोहित डिमरी ने कहा कि 10 नवंबर को हरिद्वार में स्वाभिमान महारैली आयोजित की जा रही है. आज पहाड़ के साथ ही तराई क्षेत्रों में रह रहे मूल निवासियों के सामने अपने अस्तित्व को बचाने का संकट है। हरिद्वार की अपनी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान है. स्वाभिमान यात्रा के जरिए गंगा, गन्ना और गुड़ को बचाने के लिए अभियान शुरू किया जाएगा. हरिद्वार महारैली के बाद भी सरकार नहीं जागी तो संघर्ष समिति 26 नवंबर से भूख हड़ताल शुरू कर देंगे.

सरकार की मंशा पर संदेह

डिमरी ने कहा सरकार बजट सत्र में मजबूत भू-कानून लाने की बात कह रही है. लेकिन इससे पहले सरकार कैबिनेट बैठक बुलाकर भूमि कानूनों में हुए संशोधनों को रद्द करने का अध्यादेश ला सकती है. लेकिन सरकार की मंशा स्पष्ट नहीं दिखाई देती. जब अवैध मलिन बस्तियों को बचाने के लिए रातों-रात अध्यादेश लाया जा सकता है तो फिर जमीनों को बचाने के लिए अध्यादेश क्यों नहीं लाया जा रहा है.

सरकार से उठता जा रहा जनता का विश्वास

आंदोलनकारियों क कहना ही कि भू-कानून को लेकर सुभाष कुमार की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई. जनता का सरकार से विश्वास उठता जा रहा है. मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारियों को एक सप्ताह के बाद भूमि कानूनों का उल्लंघन करने वालों की जमीनें सरकार में निहित करने की बात कही थी. लेकिन अभी तक कितनी जमीनें सरकार में निहित हुई, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है.

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