देवभूमि उत्तराखंड जितना अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है उतना ही अपनी संस्कृति और त्यौहारों के लिए भी जाना जाता है। प्रकृति से जुड़े यहां कई त्यौहार मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक खास त्यौहार देवभूमि में मनाया जाता है जिसे घी संक्रांति, घी त्यार या ओलगिया कहा जाता है। इस दिन सभी घी खाते हैं और सिर पर भी लगाते हैं। इस दिन घर में बनाए जाने वाले पकवान भी घी में ही बनाए जाते हैं।
इस साल कब है घी संक्रांति ?
भादो की पहली तिथि को मनाए जाने वाला ये त्यौहार काफी खास है। उत्तराखंड प्रकृति से जुड़ा राज्य है और यहां के हर तीज त्यौहार प्रकृति के इर्द-गिर्द ही सिमटे होते हैं। घी त्यार भी एक ऐसा ही त्यौहार है, जो किसानों, फसलों और पशुपालकों से जुड़ा हुआ है। घी त्यार या ओलगिया कृषि समृद्धि और फसलों, फलों, सब्जियों और दूध उत्पादों की प्रचुरता के लिए आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इस साल 16 अगस्त को ये त्यौहार मनाया जाएगा।
क्यों मनाया जाता है घी त्यार या ओलगिया ?
कहा जाता है की दशकों पहले जब उत्तराखंड में चंद राजाओं का शासन हुआ करता था, तब इस त्यौहार को मनाने की शुरूआत हुई। उस समय शिल्पी लोग अपने हाथों से बनी कलात्मक चीजें, गांव के काश्तकार अपने खेत में उगे फल, साग सब्जी, दै-धिनाई जो भी उनके घर में होता उसे राजमहल में लेकर जाते थे।
इस दिन राजा- महाराजा इन शिल्पियों और काश्तकारों को एक खास भेंट ओगल देते थे। उस जमाने में इसे ओगल प्रथा कहा जाता था। फिर समय बदला और प्रथा का रुप भी बदल गया। अब लोग घी त्यार के दिन अपने ग्राम देवता के बाद पुरोहित, रिश्तेदार या परिचित लोगों को साग, सब्जी, दूध-धिनाई भेंट में देकर ओगल की रस्म को पूरा करते हैं। इसके साथ ही घी जरूर खाते हैं।
त्यौहार मनाने के पीछे है ये मान्यता
घी त्यार के दिन घर के सारे सदस्यों के सिरों पर ताजा घी लगाना जरूरी होता है। लोकमान्यता है कि जो ऐसा नहीं करता उसे अगले जन्म में गनेल यानि की घोंघा बनना पड़ता है।
घी खाने के साथ ही इसे पैरों के तलवे पर भी लगाया जाता है। इस दिन बेडू की रोटी बनाई जाती है जिसे घी के साथ खाया जाता है। इसके साथ ही घी में कई तरह के पकवान भी इस दिन बनाए जाते हैं।