हर कोई Imroz नहीं बन पाता, इतिहास में दर्ज एक कहानी ऐसी भी, अमृता और इमरोज की दास्ता

imroz amrita love story इमरोज और अमृता की प्रेम कहानी

आपने आज तक कई प्रेम कहानीयां सुनी होंगी। लेकिन कुछ कहानीयां ऐसी होती हैं जो अलफाजों में बयां नहीं की जा सकती। उन्हें बस महसूस किया जाता है। आज हम आपको एक ऐसी ही प्रेम कहानी सुनाने जा रहे हैं। जिसे आप सिर्फ सुनेंगे नहीं, बल्कि महसूस करेंगे क्योंकि ये कहानी शब्दों की सीमाओं से परे है ये कहानी है अमृता और इमरोज की।

लिव इन के जिन रिश्तों को आज हम आम होता देख रहे हैं। अमृता प्रितम ने इसकी नीव 1966 में ही रख दी थी। जब उन्होंने समाज की परवाह किए बिना अपनी जिंदगी के फैसले लिए उस दौर में उनके इस कदम पर सवाल कई उठे, लेकिन अमृता ने कभी इन बातों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।

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इमरोज और अमृता की प्रेम कहानी

साहिर-अमृता-इमरोज की प्रेम कहानी

रीति-रिवाज से एक शादी फिर अलगाव, एक शायर से एकतरफा प्यार और बिना शादी एक शख्स के साथ जीवन गुजारना, इतने उतार-चढ़ाव शायद कम ही लोगों की जिंदगी में आते हों। लेकिन अमृता प्रीतम इन्हीं उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी जीने वाली शख्सियत थीं।

इस कहानी को आगे बढ़ाने से पहले आपको अमृता साहिर और इमरोज़ से इंट्रोड्यूस करा देते हैं। अमृता एक कवयित्री जो अपने शब्दों के जादू से हर दिल को छू जाती थी। साहिर मशहूर शायर थे जिन्हें अमृता दिलों जान से चाहती थी। तो वहीं इमरोज एक चित्रकार जिन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी अमृता के नाम कर दी। अब रहस्यों से भरी अमृता की इस जिंदगी को कड़ी दर कड़ी समझते हैं।

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साहिर-अमृता-इमरोज

16 साल की उम्र में हुई अमृता की शादी

16 साल की उम्र में अमृता की शादी लाहौर के एक बिजनेसमैन प्रीतम सिंह से हुई। हालांकि उन्होंने इस रिश्ते को अपने कर्तव्यों से निभाया लेकिन ये शादी उनके दिल तक कभी नहीं पहुंच पाई। इसके बाद उनकी जिंदगी में एक शख्स आया साहिर लुधियानवी
बात 1944 की है। एक मुशायरे में जब शायर साहिर लुधियानवी और लेखिका अमृता प्रीतम की पहली मुलाकात हुई। दोनों ने एक दूसरे को देखा और प्यार हो गया। ऐसा प्यार जिसे अमृता मरते दम तक नहीं भूला पाई।

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साहिर और अमृता

साहिर से करती थी प्यार

अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम अपनी साहिर के साथ हुई मुलाकातों का जिक्र करते हुए लिखती हैं। ‘जब हम मिलते थे, तो जुबां खामोश रहती थी। नैन बोलते थे। दोनों बस एक टक एक दूसरे को देखा किया करते और इस दौरान साहिर लगातार सिगरेट पीते रहते। अमृता साहिर के प्यार में इतनी पागल थी की जब वो वहां से चले जाते, तो अमृता उनकी पी हुई सिगरेट के टुकड़ों को लबों से लगाकर अपने होठों पर उनके होठों की छुअन महसूस करने की कोशिश करती।

समाज पुरानी सोच की जंजीरों को तोड़ा

ये वो दौर था जब समाज पुरानी सोच की जंजीरों से जकड़ा हुआ था और उस वक्त प्रेम में पड़ी अमृता ने ऐसा कदम उठाया जिस बारे में तब औरतें सोच भी नहीं सकती थी। उन्होंने रीति रिवाजों से बंधी अपनी शादी तोड़ दी और अपने लिए एक नया रास्ता चुना।
दिल्ली की गलियों में एक किराए के घर में अमृता ने अपनी जिंदगी के नए अध्याय की शुरुआत की। इसी बीच उनकी मुलाकात हुई इमरोज़ से।

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इमरोज और अमृता प्रीतम

इमरोज से हुई मुलाकात

अमृता और इमरोज़ के बीच एक ऐसा रिश्ता बना जो शायद अमर हो जाने की ओर बढ़ने लगा।अमृता और इमरोज़ का मिलने जुलने का सिलसिला शुरु हो गया। ये मुलाकातें धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गई। फिर ये दोस्ती एक ऐसी अनकही डोर बन गई, जो दोनों को एक ही छत के नीचे ले आई।

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हालांकि, उनका रिश्ता उस वक्त समाज के पारंपरिक बंधनों से अलग था। लेकिन अमृता बनी ही इन बेड़ियों को तोड़ने के लिए थी।
अमृता ने इमरोज़ के साथ अपनी जिंदगी के आखिरी 40 साल बिताए। वो इमरोज़ जिसके रोम-रोम में अमृता बसा करती थी। वो इमरोज़ जो अमृता को जिंदगी भर एक भक्त की तरह चाहता रहा।

इमरोज़ के साथ आने के बावजूद अमृता के दिल की धड़कन थमने तक साहिर के लिए धड़कती रही। वहीं साहिर ने भी अमृता के लिए न जाने कितनी नज्में, कितने गीत, कितने शेर और कितनी गजलें लिखीं। उन्होंने जब पहली बार इमरोज को अमृता के साथ देखा। तब उनके दिल में जो टीस उठी उसे साहिर ने एक गाने में पिरोया। उसके बोल कुछ इस प्रकार है,

महफिल से उठकर जाने वालों
तुम लोगों पर क्या इल्जाम
तुम आबाद घरों के वासी
मैं आवारा और बदनाम।

imroz amrita इमरोज और अमृता

साहिर के दिल से नहीं मिटी अमृता की परछाई

मगर मोहब्बत का ये सिलसिला उस वक्त टूटा, जब साल 1960 में साहिर, एक गायिका सुधा मल्होत्रा पर फिदा हो गए। लेकिन सुधा का आकर्षण भी साहिर के दिल से अमृता की परछाई को मिटा नहीं पाया। इस अधूरे लेकिन अमर इश्क़ पर साहिर ने कुछ पंक्तियां लिखी जिन्हें कहीं ना कहीं आपने जरूर सुना होगा। वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना।

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अमृता और इमरोज

अमृता के लिए समर्पित थे इमरोज

इमरोज़, अमृता की जिंदगी में आए तीसरे पुरुष थे। एक ऐसे पुरुष जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी अमृता के नाम कर दी। इमरोज़ ने ना कभी अमृता से अपनी मोहब्बत का इजहार किया और ना ही अमृता कभी साहिर को भूलकर इमरोज़ की हो पाई। इमरोज़ जब भी अमृता को स्कूटर पर ले जाते तो अमृता अक्सर उंगलियों से उनकी पीठ कुछ लिखा करती और वो नाम होता साहीर। इमरोज़ भी उम्र भर अपनी प्रेमिका के प्रेमी का नाम पीठ पर लिए फिरते रहे। वो कहा करते “मैं भी अमृता का मेरी पिठ भी अमृता की।”
इमरोज़ को इन बातों का कहां फर्क पड़ने वाला था उनके लिए तो अमृता एक देवी थी और वो उनके भक्त।

imroz amrita इमरोज और अमृता

साए की तरह अमृता के साथ रहते थे इमरोज

अमृता कई बार इमरोज़ से कहा करती,“अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते।”
इमरोज और अमृता एक ही घर में अलग अलग कमरों में रहा करते थे। कभी किसी इंटरव्यू में इमरोज से इस बारे में पूछा जाता तो वो कहते की हमें एक-दूसरे की ख़ुशबू तो आती है।

इमरोज़ के लिए यही काफी था। इमरोज़ अमृता के लिए इतने समर्पित थे की जब वो रात को जग कर लिखा करती तो इमरोज ने भी रात को जगना शुरु कर दिया ताकी वो अमृता को चाय बनाकर दे सकें। ये सिलसिला चालीस-पचास सालों तक चला। अमृता जहां भी जाती थीं इमरोज़ साए की तरह उनके साथ होते। यहां तक कि जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया तो इमरोज़ हर दिन उनके साथ संसद भवन जाते और बाहर बैठकर अमृता का इंतज़ार किया करते।

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अमृता ने इमरोज की बाहों में आखिरी सांस ली

लोग उन्हें अमृता का ड्राइवर समझते थे। अपने एक इंटरव्यू में इमोरज बताते हैं की जैसे ही उद्घोषक चिल्लाकर कहता था- “इमरोज़ ड्राइवर, तो मैं गाड़ी लेकर पहुंच जाया करता।”अमृता का आख़िरी समय बहुत तकलीफ़ और दर्द में बीता। बाथरूम में गिर जाने से उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई।

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इसके बाद भी इमरोज़ ने अमृता को प्यार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इमरोज़ ने उनकी बीमारी को उनके साथ-साथ सहा। वो उनको खिलाते, नहलाते, उनको कपड़े पहनाते। वो अमृता से बातें करते, उन पर कविताएं लिखते, उनकी पसंद के फूल लेकर आते। जबकि अमृता इस काबिल भी नहीं थीं कि वो हूँ-हाँ करके उसका जवाब ही दे पाए।
31 अक्तूबर 2005 को अमृता ने इमरोज़ की बाहों में आख़िरी सांस ली। दुख की बात है कि इमरोज़ के लिए सिर्फ वो एक कविता छोड़ा गई। जिसके बोल है, main tainu pher milangi

मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूंगी
मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहाँ कैसे पता नहीं।

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इसके बाद मरते दम तक इमरोज़ अमृता की यादों के सहारे रहे वो कहा करते की उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं।
मौजूदा वक्त में अमृता प्रितम और इमरोज़ की चर्चाएं काफी होती हों लेकिन अमृता इमरोज़ और साहिर की प्यार की रूहानियत को काफी कम लोग ही समझ पाते हैं। प्रेम में इमरोज़ बने रहना आसान नहीं है।

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