रायबरेली सीट क्यों है हाईप्रोफाइल? मोदी लहर के बाद भी कांग्रेस की विजय, पढ़ें सियासी सफर

लोकसभा चुनावों में जिस सीट की सबसे ज्यादा चर्चा होती है उनमें एक सीट रायबरेली भी है। देश में मोदी लहर के बाद भी राज्य की यही वो सीट है जहां साल 2019 में कांग्रेस की सोनिया गांधी को जीत मिली थी।

साल 1957 में अस्तित्व में आई रायबरेली सीट काफी हाई प्रोफाइल मानी जाती है। आपको बता दें की साल 1951-52 के दौर में जब पहले लोकसभा चुनाव हुए तब रायबरेली और प्रतापगढ़ को मिलाकर एक लोकसभा सीट थी। इस चुनाव में इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी कांग्रेस के टिकट पे लड़े और जीते। फिर साल 1957 में रायबरेली अलग सीट बन गई लेकिन फिर भी फिरोज गांधी का वर्चस्व इस सीट पर बरकरार रहा।

इंदिरा ने की राजनीतिक करियर की शुरुआत
सांसद बनने के महज 3 साल बाद फिरोज गांधी का निधन हो गाय और साल 1962 में रायबरेली सीट के लिए उप चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी बैजनाथ कुरील ने जनसंघ के प्रत्याशी तारावती को हरा दीया। फिरोज गांधी के निधन के चार साल बाद साल 1966 में इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी। इसी के साथ साल 1967 में इंदिरा ने रायबरेली सीट से ही अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की जहां उन्हें जीत हांसिल हुई ।

साल 1971 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुए इस बार भी कांग्रेस की तरफ से इंदिरा मैदान में थी और उनके विपक्ष में सोशलिस्ट पार्टी के राज नारायण थे। इस चुनाव में इंदिरा को 1,83,309 और राज नारायण को 71,799 वोट मिले। लिहाजा इसके बाद इंदिरा पर सरकारी तंत्र का दुरुपयोग और चुनाव में हेराफेरी का आरोप लगाते हुए राजनारायण ने इस चुनाव के नतीजों को इलाहाबाद के हाई कोर्ट में चुनौती दी।

राजनारायण की चुनाव याचिका पर फैसला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इंदिरा ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और अपना इस्तीफा देने से साफ मना कर दिया। फिर कुछ दिन बाद ही इंदिरा गांधी ने देश में एमेरजेंसी लागू कर दी। जिसका जिम्मेदार आज तक इसी घटना को माना जाता है।

1977 में इंदिरा रायबरेली से हार गई
साल 1971 के बाद देश में अगले चुनाव इमरजेंसी के बाद साल 1977 में हुए जिसके बाद इंदिरा को रायबरेली सीट से बड़ा झटका लगा। इस चुनाव में इंदिरा हार गई। उन्हें भारतीय लोक दल के प्रत्याशी राजनारायण ने 55,202 वोटों से हरा दिया। इसके बाद इंदिरा कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से उप-चुनाव लड़ीं और जीत कर आईं।

जिस रायबरेली को कांग्रेस सेफ सीट के तौर पर मान रही थी अब वहां जीत को लेकर कांग्रेस आशंकित हो चुकी थी। यही वजह थी कि साल 1980 में जब भारत में आम चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी ने रायबरेली और आंध्र प्रदेश की तत्कालीन मेंडक सीट से भी पर्चा भरा। इंदिरा दोनों ही सीटों से जीत गईं। हालांकि बाद में उन्होंने रायबरेली सीट से इस्तीफा दे दिया।

इस वजह से रायबरेली में उपचुनाव कराए गए। कांग्रेस ने यहां से गांधी परिवार के ही करीबी अरुण नेहरू को टिकट दिया। अरुण नेहरू चुनाव जीत गए। साल 1984 में हुए आम चुनावों में भी अरुण नेहरू का दबदबा इस सीट पर बरकरार रहा। साल 1989 में कांग्रेस ने इस सीट से नेहरू गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाली शीला कौल को टिकट दिया और वो जीत कर भी आईं।

लगातार दो बार कांग्रेस हारी चुनाव
साल 1996 के चुनावो में कांग्रेस ने रायबरेली सीट से शीला कौल के बेटे विक्रम कौल को उम्मीदवार बनाया लेकिन ये कांग्रेस की बड़ी गलती साबित हुई क्योंकि इस चुनाव में जीतना तो दूर कांग्रेस मैदान से ही बाहर चली गई। इस चुनाव में सुनील कौल को महज 25,457 वोट मिले जो कुल पड़े वोटों का महज 5.29 थे। हालात ये हुए कि कांग्रेस प्रत्याशी सुनील कौल की जमानत तक जब्त हो गई। इस चुनाव में भाजपा के अशोक सिंह ने बाजी मार ली इसके बाद साल 1998 के आम चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह का दमखम बरकरार रहा। इस चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार शीला कौल की बेटी दीपा कौल थी और साल 1996 के चुनाव की तरह इस बार भी कांग्रेस प्रत्याशी दीपा की जमानत जब्त हो गई।

2004 के बाद लगातार कांग्रेस की जीत
लगातार 2 बार हारने के बाद साल 1999 के लोकसभा चुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा ने इस सीट पर कांग्रेस को एक बार फिर जीत दिलाई। साल 2004 के चुनावों में सोनिया गांधी की रायबरेली सीट पर एंट्री हुई और इसके बाद कांग्रेस ने मानों ये सीट अपने नाम कर ली। रायबरेली की जनता लगातार सोनिया गांधी को चुनावों में जीत दिलाती रही।

सोनिया गांधी और रायबरेली सीट एक दूसरे की पहचान
सोनिया गांधी और रायबरेली की सीट एक दूसरे की पहचान बन गईं। साल 2004, के बाद 2006 के उपचुनाव, 2009, 2014 और 2019 में सोनिया गांधी ने लगातार पांच जीत हासिल की। 2014 के चुनाव में जब हर जगह मोदी लहर का असर दिखा था तब भी सोनिया ने यहां से 3,52,713 मतों के अंतर से बीजेपी के अजय अग्रवाल को हराया था। हालांकि 2019 के चुनाव में सोनिया की जीत का अंतर कम हो गया और 1,67,178 मतों के अंतर से जीत हासिल कर सकीं।

हाल ही में सोनिया गांधी ने लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला लिया है। उन्होंने रायबरेली की जनता को एक भावुक पत्र लिखा और रायबरेली और अपने रिश्ते को रेखांकित किया।

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